Vidur Niti Quotes in Hindi विदुर नीति

Vidur Niti Quotes in Hindi: विदुर नीति महाभारत का एक बहुत प्रसिद्ध और पालन करने योग्य प्रसंग है. इसमें महात्मा विदुर जी ने राजा धृतराष्ट्र को पृथ्वीलोक और स्वर्गलोक में कल्याण करने वाली बहुत सी बाते समझाई है.

विदुर नीति से विद्वान, तरुण, वृद्ध, बालक, स्त्री, शासक, प्रजा,धनी, गरीब, विद्यार्थी, शिक्षक, सेवावर्ती, एवं शुद्ध और सुखी जीवन जीने की कामना करने वाले सब लोगो के फायदे की है.

हमने आपके लिए Vidur Niti के संस्कृत में 10 श्लोक और उनका अर्थ हिंदी में लिखा है:

Vidur Niti Quotes in Hindi / महात्मा विदुर के आदर्श वाक्य

श्लोक 1:

आनृशंस्यादनुक्रोशाद धर्मात् सत्यात् परक्रमात् |
गुरुत्वात् त्वयि संप्रेक्ष्य बहून् क्लेशंस्तितिक्षते ||

अर्थ: महात्मा विदुर जी कहते है कि युधिष्ठिर में क्रूरता का आभाव, दया, धर्म, सत्य तथा पराक्रम है. वो आपमें पूज्य बुद्धि रखते हैं. इन्ही सद्गुणों के कारण वे सोच विचार कर बहुत से क्लेश सह रहे हैं.

श्लोक 2:

दुर्योधने सौबले च कर्ने दु:शासने तथा |
एतेश्वैश्वर्यमाधाय कथं त्वम् भुतिमिच्छ्सी ||

अर्थ: आप दुर्योधन, शकुनी, कर्ण, तथा दु:शासन जैसे अयोग्य व्यक्तियों पर राज्य का भार रखकर कैसे ऐश्वर्य वृद्धि चाहते हैं?

श्लोक 3:

आत्मज्ञानं समारंभस्तितीक्षा धर्मनित्यता |
यामार्थान्नापकर्षन्ति स वै पंडित उच्यते ||

अर्थ: अपने वास्तविक स्वरुप का ज्ञान, उद्द्योग, दुःख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता – ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ से च्युत (बहकना या भटकना) नहीं करते, उसी व्यक्ति को पंडित कहा जाता है.

श्लोक 4:

निषेवते प्रशास्तानी निन्दितानी न सेवते |
अनास्तिक: श्रद्दधान एतत् पन्दित्लाक्षनं ||

अर्थ: जो अच्छे कर्मो को करता है और बुरे कर्मो से दूर रहता है. साथ ही जो आस्तिक और श्रृद्धालु है. उसके ये सद्गुण पण्डित होने के लक्षण है.

श्लोक 5:

क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्री:स्तम्भो मान्यमानिता |
यामार्थान्नापकर्षन्ति स वै पंडित उच्यते ||

अर्थ: क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दंडता तथा अपने को पूज्य समझना – ये भाव जिसको पुरुषार्थ से भ्रष्ट नहीं करते, वही पंडित कहलाता है.

श्लोक 6:

यस्य कृत्यं न जानन्ति मंत्रम व मन्त्रितं परे|
क्रित्मेवास्य जानन्ति स वै पंडित उच्यते ||

अर्थ: दुसरे लोग जिसके कर्तव्य, सलाह और पहले से किये हुए विचार को नहीं जानते बल्कि काम पूरा होने पर ही जानते है. वही पंडित कहलाता है.

श्लोक 7:

यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुश्नं भयं रति:|
समृद्धि रसमृद्धिर्वा स वै पंडित उच्यते ||

अर्थ: सर्दी-गर्मी, भय अनुराग, संपत्ति अथवा दरिद्रता – ये जिनके कार्य में विघ्न नहीं डालते. वही पंडित कहलाता है.

श्लोक 8:

यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मर्थावानुवर्तते |
कमादर्थम वृणीते य: स वै पंडित उच्यते ||

अर्थ: जिसकी लौकिक बुद्धि धर्म और अर्थ का ही अनुसरण करती है और जो भोग को छोड़कर पुरुषार्थ का ही वरन करता है वही पंडित कहलाता है.

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श्लोक 9:

यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते |
न किन्चिद्वमन्यन्ते नरा: पंडितबुद्धय:||

अर्थ: विवेकपूर्ण बुद्धि वाले पुरुष शक्ति के अनुसार काम करने की इच्छा रखते है और करते भी है तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझकर उसकी अवहेलना नहीं करते हैं.

श्लोक 10:

नाप्राप्य मभिवान्छन्ति नष्टम् नेछंती शोचितुम|
आपत्सु च न मुह्यांति नरा: पण्डित बुद्ध्य: ||

अर्थ: पंडितो सी बुधि रखने वाले मनुष्य दुर्लभ वास्तु की कामना नहीं करते है. खोई हुयी वास्तु के विषय में शोक करना नहीं चाहते और विपत्ति में पड़कर घबराते नहीं है.

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