दोस्तों आज आपके लिए एक inspiring story in Hindi post publish कर रहे है. जिसका शीर्षक है – पिता का अधूरा सपना और एक लाख गेंदें ( प्रेरक प्रसंग ) / Father’s Unfinished Dream & one Million Balls.
एक बार फिर यह सिद्ध हो गया कि कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय से क्रिकेट के आसमान में गेंद उछाल कर छेद किया जा सकता है।
तेज गेंदबाज दीपक चाहर ने बांग्लादेश के खिलाफ हैट-ट्रिक लेकर क्रिकेट की दुनिया में अपनी धमाकेदार हाजिरी लगाई है । महज 7 रन देकर हैट-ट्रिक समेत 6 विकेट झटक लेना बड़े बड़े सूरमा के लिए दुर्लभ है
उनका यह प्रदर्शन टी-20 इंटरनैशनल में किसी भी गेंदबाज का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
यह तो हुई उनकी सफलता की पहली बड़ी सीढ़ी। अभी तो उनके सामने लंबा रास्ता है। एक दो बेहतरीन प्रदर्शन कुछ महीने तक ही चर्चा में रहते है।
Story of Struggle & Rejection behind SUCCESS
चलिये अब देखते है उनके इस कामयाबी के पीछे के संगर्ष और रिजेक्शन की कहानी
2008 में ग्रेग चैपल ( Greg Chappell) ने ऑस्ट्रेलिया में एक अंडर-19 टूर्नमेंट खेल स्वदेश लौटे दीपक को रिजेक्ट कर दिया था। बस यही बात उसने दिल से लगा ली। कहते हैं जो होता है अच्छा ही होता है। शायद वे सिलैक्ट हो जाते तो उनमें वह धार नहीं हो पाती जो उन्होने अस्वीकर का मुख देखने के बाद कड़ी मेहनत की।
दीपक ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ग्रेग चैपल मुझे राजस्थान के अंतिम 50 में भी नहीं चुना। उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें नहीं लगता कि मैं उच्च स्तर पर क्रिकेट खेल सकता हूं। मुझे ये बात बहुत बुरी लगी। मेरे पूरे करियर में वो एक ऐसा दिन था जब मुझे रोने का मन हुआ। हालांकि अच्छा ही हुआ की मुझे घर भेज दिया गया, क्योंकि इसके बाद मैंने जमकर मेहनत की और दो साल के भीतर मैं राजस्थान के लिए रणजी ट्रोफी खेल रहा था।
हर हालात में आप सीख सकते हैं अगर आप सीखने को तैयार है तो…
वे कहते हैं चेन्नै में आई पी एल खेलते हुए मैंने सीखा कि किस तरह से ओस और टपकते पसीने से निबटना है। अपने हाथों को कैसे साफ रखना है कि गेंदबाजी पर असर ना पड़े। हाथ से गेंद फिसले नहीं इसके लिए कई बार मैं सूखी मिट्टी अपने हाथों पर लगाता हूं और फिर गेंदबाजी करता था ।
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पिता का अधूरा सपना
वायुसेना से सेवानिवृत पिता लोकेन्द्र्सिंह चाहर अपने समय में खुद क्रिकेटर बनना चाहता था, लेकिन उनके पिता चाहते थे मैं रेसलिंग करूँ। रेसलिंग में कुछ खास नहीं कर पाने के बाद वे अपने सपने को दबा कर रह गए।
जब पहली बार दीपक को गेंदबाजी करते देखा तो उन्हें अपना सपना अपने बेटे के माध्यम से पूरा करने की धुन सवार हो गई। यह हर भारतीय पिता चाहता है जो वे नहीं बन सका उसका बेटा उसमें कामयाबी हासिल करें।
इसके लिए उन्होने कुछ कठिन फैसले लिए। जैसे कि उसका स्कूल छुड़वा दिया। उसका शेड्यूल खुद बनाया । उसे कब उठना है। कितनी एक्सरसाइज करनी है, क्या खाना है और कब तक फील्ड पर रहना है।
अपनी जमापूंजी से उन्होने एक टर्फ और एक कंक्रीट की पिच बनवाई जहां उनका बेटा ट्रेनिंग कर सके। कंक्रीट की पिच पर कम से कम एक लाख गेंदे उसने अपने बेटे से फिंकवाई। उन एक लाख गेंदों से उसके गेंदबाजी में निखार ला दिया। जिसका नतीजा
उनके पास कोचिंग की कोई औपचारिक डिग्री नहीं थी, लेकिन दीपक का मार्गदर्शन करना सीखा।
जैसा बेटे में जुनून था वहीं आग पिता में भी थी ।पिता के पसंदीदा गेंदबाज मैलकम मार्शल और डेल स्टेन थे उनके वीडियो देख देखकर , आउट स्विंग करते हुए उनकी कलाई की स्थिति समझी कमेंटेटरों को दिन भर सुनने लगे और इससे जो सीखता था उसे लेकर दीपक के साथ काम करता था।”
लर्निंग पॉइंट्स फॉर टर्निंग पॉइंट्स
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हिंदी कोट्स के प्रिय पाठको यह पोस्ट हमें गौतम कुमार जी ने भेजी है जिनका विवरण निम्न लिखित है:
रचनाकर :- गौतम कुमार सागर,
सार्वजनिक उपक्रम में वरिष्ठ प्रबन्धक, वडोदरा
मोबाइल :- 7903199459