Thoughts of Swami Vivekananda in Hindi स्वामी विवेकानंद की जीवनी कथा और उनके अनमोल विचार
बचपन का नाम – बिले
पूरा नाम – नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त
पिता का नाम – विश्वनाथ दत्त
माता का नाम – भुवनेश्वरी देवी
जन्म तारीख – 12 जनवरी 1863
जन्म का स्थान – कलकत्ता (पश्चिम बंगाल), भारत देश
Biography of Swami Vivekananda in Hindi स्वामी विवेकानंद की जीवनी
उन्होंने देखा की एक नवजात शिशु गदबदा, स्वस्थ और सुन्दर था. उन्हें लगा की वह (भुवनेश्वरी देवी का पुत्र) अवश्य विलक्षण बालक है. भुवनेश्वरी देवी का यह विश्वास था की उनका नन्हा पुत्र वीरेश्वर भगवन शंकर का प्रसाद है. नन्हे बालक को प्यार से बिले बुलाया जाने लगा.
एक दिन तो बिले ने घर में बखेड़ा खड़ा कर दिया. उसने सभी कम्बल और तकिये उठाकर बिस्तर पर रख दिए. भुवनेश्वरी देवी ने उन्हें बहुत फटकार लगाई, यह शोर शराबा सुनकर पड़ोस में रहने वाली एक भली बुढ़िया आ गई. उस बुढ़िया ने कहा बिले स्वयं शिव का अवतार है. कभी कभी बिले जब अधिक शरारत करता तब उसकी माँ उन पर पानी डालकर शिव शिव बोलती और वो सच में शांत हो जाते थे.
एक बार की बात है बिले ध्यान का खेल खेल रहे थे. तब वहां एक जहरीला सांप आ गया. उसके दोस्त भाग गए और बोले बुद्ध की तरह ध्यान लगाये बैठा रहा और थोड़ी देर में सांप चला गया. बिले ने तो 6 साल की छोटी उम्र में ही रामायण और महाभारत कंठस्त कर ली थी.
एक बार भूगोल के एक अध्यापक ने बिले से एक प्रश्न पूंछा. बिले ने उत्तर दिए लेकिन अध्यापक ने कहा की यह जवाब गलत है और बिले को एक थप्पड़ मार दिया. घर जाकर बिले ने यह बात माता को बताई तो माता ने कहा पुत्र चाहे जो होजये तुम सदैव सत्य बोलना. शाम को बिले के अध्यापक घर आये और उन्होंने क्षमा मांगी.
बिले जो कुछ करता उसे करने से पहले वह परखता फिर उस पर विश्वास करता. जब बिले बड़ा हुआ तो उसे नरेन्द्रनाथ के नाम से बुलाया जाने लगा. बचपन से ही नरेन्द्र को ईश्वर पर विश्वास था. उसके मन में अनेक प्रश्न थे फिर वह आचार्य रामकृष्ण परमहंस से मिले. बालक नरेन्द्र ने उनसे पुछा की क्या आपने ईश्वर को देखा है.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का देहांत हो गया और नरेन्द्र को विवेकानंद (Swami Vivekananda) कहा जाने लगा.
Anmol Kathan / Suvichar of Swami Vivekananda in Hindi
आइये जानते है की स्वामी विवेकानंद की प्रिय सूक्तियां /Favorite Proverb of Swami Vivekananda in Hindi कौन सी है:
ईश्वर – “ईशस्यहि वशे लोको याषा दारुमायी यथा”.
अर्थ: मनुष्य उसी प्रकार ईश्वर के वश में है जैसे कठपुतली खिलाड़ी के वश में होती है.
जीव – जीवो जीवस्य जीवनम् .
अर्थ: जीव ही जीव के जीवन का साधन है.
आत्मा – आत्मा सर्वस्य भाजनम .
अर्थ: आत्मा ही समस्त शुभाशुभ परिणामो का भजन पात्र है.
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सत्संगति – सत्संगति कथय किम न करोति पुंसाम .
सज्जनों की संगती मनुष्यों का बहुत लाभ करती है.
जन्म – धिग जन्म यत्नरहितम. धिग जन्म ज्ञानवर्जितम.
अर्थ: प्रयत्न रहित या संघर्ष रहित जीवन को धिककार है और ज्ञान रहित जीवन को धिक्कार है.
जगत/संसार – यथा संवेदनं जगत.
अर्थ – मनुष्य की जैसी संवेदना होती है उसके लिए जगत वैसा ही है.
जामाता – जामाता दशमो गृह.
अर्थ: जामाता दसवां गृह होता है.
भोग – भोगे रोग्भयम.
अर्थ: भोग में रोग का भय बना रहता है.
म्रत्यु/ मरण – न कृतार्थानां मरणभयं .
अर्थ: जिसकी भौतिक तथा अध्यात्मिक सभी कामनाएं पूर्ण होजाती है उन्हें मृत्यु का भय नहीं रहता.
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बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति …. very nice article …. Thanks for sharing this!! 🙂